ना जाने कितना नामों से जानी जाती है ये छोटी छोटी बड़ीया ।बड़ी , अदौरी ,कुमरौरी,बीड़ियाँ, तिसीऔरी, चावल की चरौरी, तिलौरी , फूल ....
बिहारी घरों की पहचान रही है अदौरी -बड़ी।दादी नानी के जमाने से सुनते आए है की इसका कितना अहम योगदान रहा है घर केअर्थव्यवस्था में जब बरसात के महीने में जब हरी सब्ज़िया मिलनी मुश्किल हो जाती है तब इनसब सुखी अदौरी से घर परिवार कोचलाया जाता रहा है।खास कर बिहारी घरों की पहचान रही है अदौरिया और हम जैसे बाहर रहने वाले लोग ज़्यादा समझते है अदौरी कीअहमियत को 😎हम अपना मुँह मियाँ मिट्टू नही बन रहे है, जो सच है वो लिख रहे है। हमारे जैसे बाहर रहने वाले लोगों के लिए दुर्लभहोता है।मशहूर तो पंजाब भी है बड़ी के लिए मतलब और भी प्रांत है जैसे राजस्थान वैगरह भी पर अपने अपने गाँव देश की बड़ी अदौरीकी बात हीं निराली होती है।
विदेशों में रहने वाले बिहारी कभी नही निकल पाते अपने देशी भोजन और स्वाद से और मायके ससुराल पर आश्रित रहते है की माँबनाएगी तो हमारे हिस्से की अदौरी भी पार ( बना) के रख देगी कोई आया या जब गए तो ले आए 😀
हर साल यही होता आया है की हम तेईस किलो के लिमिट के चक्कर में दो-तीन बैग सिर्फ़ अदौरी तिलौरी आचार और सतुआ बसमतीचूड़ा, गुड़ , घर का दाल से भरने की जुगाड़ में लगे रहते और प्राणनाथ अपनी नाखुशी ज़ाहिर करने में लगे रहते नियम क़ानून बताते रहतेऔर हम थेथर जैसा अनसुना करने का दिखावा करते की हम इसका कोई असर नही हो रहा पर डर तो लगते रहता है पर ऊ का है की डरके आगे जीत है की भावना से ओतप्रोत रहते है।😝
मेरे धीया पुता इनकलुडिंग प्राणनाथ सभी को बहुत पसंद है चावल के तिलौरी या चरौरी ।
सब बड़े पसंद से खाते है और सबको हर किसी से ज़्यादा चाहिए होता है, और हम उसको लिमिट में फ़्राई करते थे कभी कभी हिस्सेदारीके हिसाब से गिन गिन कर क्यों की ज़्यादा दिन तक चलाने का भी प्रेशर रहता था और पिछले साल माँ को पूछ दिए पाँच छौ बार त माँभी घुड़क दी की इतना बना के दिए थे तुमको तुम सब भुझा जैसा खा गई क्या ?🤨
पर हर साल जैसे जैसे सतुआनि के आसपास के टाइम मौसम गरम होने लगता है तो लोग सब कोई आज कल वटसैपियाने लगता हैफ़ोटो-टोटों का ख़ूब अदान प्रदान होने लगता है और हम मने मने अपने दुमंज़िला घर के बालकोनी से बाहर स्नोफ़ॉल देख देख करखिसियानी बिल्ली खम्भा नोचने वाले टाइप का ग़ुस्सा आता 🤓
पर पिछले साल हम को मांट्रीऑल के धूप का गर्मी ख़याल आया की थोड़ा बना के ट्राई करने में क्या जाता है 🧐ठीक बना तो बना नहीतो बीग (फ़ेकना) देंगे अब कोनो नंनद आ जेठनी तो है नही गार्डिंग करने वाला की सास का कान भरने वाला टाइप तो हम निश्चिंत थे 😜
तो हुआ क्या की पिछले साल के तिलौरी पारने का अनुभव बहुत हीं अच्छा रहा मतलब स्वाद उवाद भी एक दम परफ़ेक्ट था गाँव घरजैसा 😎
इस साल मेरा कॉन्फ़िडेन्स का लेभल (लेवल)एकदम हाई था मतलब ऊ का कहता है लोग आज कल हाउ इस दी जोश (how is the jose)😎😎😎😎टाइप
हम अपने तो पारे हीं पारे एगो भाभी है ईहा उनको भी परवा दिए की आप भी बनाइये। हम दोनो अपने अपने घर के चौहदी को ध्यान मेंरखते हुए अदौरी बड़ी पार के बहुत खुश हुए की अब क्या बताए कि कितना खुश .....अब ख़ुशी नापने का कोई पैमाना तो है नही की नापके बताए है की नही😌
कोई घोर रसोई प्रेमी घरेलू महिला हीं समझ सकती है हमारे ख़ुशी को 🥰
हम दोनो अपने अपने हाता के लम्बाई चौड़ाई के हिसाब से बड़ी पारे, अब हम बालकोनी वाले घर के सीमित हाता में बड़ी पारे आ ऊभाभी अपना बड़का हाता के हिसाब से 😃बस भाभी को दिन भर बड़का टेबल को धूप के मूव्मेंट के साथ पूरे टेबल घूमाना पड़ा 😀😀😀
बन जाने के बाद भाभी बोली थैंक यू यार बन गया पर माथा धर लिया है पूरा दिन इस चक्कर में सनबाथिंग हो गया 🥺 तो हम उनकोबोले की आप रेबैन वाला करियका चशमवा काहे नही पहिनी थी आपको करियका चशमवा पहिन के ना बैठना चाहिए था बड़ी पारने😎
अब भाभी बोल रही है आधा बताई आधा नही बताई 😮
गुरु जी का दोष है ई सब 🤔
हम बोले कल जब दाल भात के साथ चावल का तिलौरी छान के खाइएगा तो सब माथा धरना भूल जाइएगा 😀
बड़ी का फ़ोटो चेप रहे है नज़र मत लगाइएगा हाँ नही तो 😎
इन्ही छोटी छोटी कोशिशों से हीं शायद महिला गृह उधोग की स्थापना हुई होगी । हम तो नाम भी सोच लिए है अपने गृह उधोग का 🙂ऊ का है ना की सोचने में कोनो पैसा कौड़ी तो लगता नही है।
- यहाँ जो कोई खाने के लोभी लोग हैं, बड़का हाता को पहचान कर अपने हिस्सा प्राप्त कर सकते है।
- हम लोग मिल बात के खाने में भरोसा करते है। 😀 #शादीशुदा रसोई
#कनाडा बिहारी से बिहारी परिवार का अदौरी प्रेम