मन करता हैं बंद घरों से हीं चीख चीख के पूछूँ तुम जाओ गे कब ???
सामने का घर बंद है उसमें रहने वाले लोग भी बंद हो गए है,बंद ताबूत के जैसे ।
मेरे पैसेज में बहने वाली हवा भी निकलने को बेचैन है, किसी सुराख़ से जैसे मैं और मेरे जैसे अंदर फँसे लोग ....
ठहरा हुआ पानी अपने भीतर कितना कुछ भर के जम जाता है,
पता तब लगता है जब वो धीरे धीरे पिघलना शुरू करता है , छोटी-छोटी पीली घास पीले बेजान पत्ते और रंगो को भीतर समेटे मुरझाए फूल ......
क्या हम सब भी ऐसे हीं हो जाएँगे मुरझाए फूलों की तरह ???
लोगों के जीवन पर हीं प्रश्न चिन्नह सा लग गया है हर कोई हर किसी को बड़े सशंकित
निगाह से तौल रहा है तौले की फ़ितरत तो हम रिश्तेदारी में करते थे और
करते थे सब्ज़ियों ओर फलो के ठेले पर।
पर अच्छा बदला लिया रिश्तेदारी ,सब्ज़ियों और फलो ने की अब तौलों एक इंसान को इंसान से ।
हमें तो आह लग गई है सुनते थे अब देख रहे है जो बोया अब काट रहे है।
सुरंगमा
#COVID-19
सामने का घर बंद है उसमें रहने वाले लोग भी बंद हो गए है,बंद ताबूत के जैसे ।
मेरे पैसेज में बहने वाली हवा भी निकलने को बेचैन है, किसी सुराख़ से जैसे मैं और मेरे जैसे अंदर फँसे लोग ....
ठहरा हुआ पानी अपने भीतर कितना कुछ भर के जम जाता है,
पता तब लगता है जब वो धीरे धीरे पिघलना शुरू करता है , छोटी-छोटी पीली घास पीले बेजान पत्ते और रंगो को भीतर समेटे मुरझाए फूल ......
क्या हम सब भी ऐसे हीं हो जाएँगे मुरझाए फूलों की तरह ???
लोगों के जीवन पर हीं प्रश्न चिन्नह सा लग गया है हर कोई हर किसी को बड़े सशंकित
निगाह से तौल रहा है तौले की फ़ितरत तो हम रिश्तेदारी में करते थे और
करते थे सब्ज़ियों ओर फलो के ठेले पर।
पर अच्छा बदला लिया रिश्तेदारी ,सब्ज़ियों और फलो ने की अब तौलों एक इंसान को इंसान से ।
हमें तो आह लग गई है सुनते थे अब देख रहे है जो बोया अब काट रहे है।
सुरंगमा
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