Sunday, April 5, 2020

ना जाने तुम कौन सी दुनिया से आए हो और किस लिए आयें हो .....?????
अपनी छोटी से दूसरे मंज़िल के घर से सामने के रस्ते को देखती हूँ, इतना सूनापन इतना संनाटा......
लोग कहते है इतनी  शांति तो शमशान में भी नहीं होती
सड़के सुनी बाज़ार ख़ाली
लोग जैसे अदृश्य हो गए
ना जाने तुम कहाँ से आए हो .......... किस मंशा से आए
माँ कहती है ग़लत मंशा रखने पर ईश्वर दंडित करते है,पर मैं उतना हीं हुलस कर पूछती हूँ ,ईश्वर कुछ करते क्यों नहीं ??
मैं दो बच्चों की माँ अपनी छोटी सी दुनिया को बचा लेने की कोशिश में लग जाती हूँ ,हर चीज़ को पोंछ देने की कोशिश में लग जाती .......
थोड़ी गर्दन ऊँची करके खिड़की से देखने की कोशिश  में हूँ की कुछ लोग दिख जाए......मारचे पी.ऐ. के झोले लिए कोई दिख जाये, या फिर सामने की स्ट्रीट में पार्किंग खोजते कोई गाड़ी दिख जायें...
शाम का इंतज़ार करती हूँ की सामने वाली घर की बत्तियाँ जले और उस छोटे बच्चे की लाइट वाली परछाई देख सकूँ उसके छोटे छोटे कदमों से रसोई  से दूसरे कमरे को नापते देख सकूँ।
मेरी हीं तरह दूसरे बड़ी खिड़कि पर कुछ हलचल मालूम होती देखती हूँ तो दो  क़तार सी आँखे मुझ से पूछती तुम सब ठीक हो ?
मेरी भरी भरी से आँखे उनसे वही सवाल करती है जो उन्होंने मुझे पूछा
इशारों में उन्होंने बताया मेरा क्या है मैं तो इंतज़ार में हूँ ......……
मेरी बेचैनी को भाप कर वो हंस कर इशारा करती अरे मैं तो डिलिभरि बॉय के इंतज़ार में हूँ
अपनी काँपते हाँथो से वॉकिंग स्टिक से इशारा करती  है
ओ आ कर तो दिखाए मेरे दरवाज़े पर,
उनकी हिम्मत से मेरी हिम्मत भी बड़ जाती....
ऐ मेरे लाल ईंटों से बने शहर
दिखा दो अपनी शक्ति की वो छू ना सके हमारी दरे दिवारों को ........
लौट आए वो सारी मजलिसें, हँसी के गुलगुले लौट आए मेरे शहर के गिटार की धुने
लौट आए मेरे शहर में बस नम्बर 24 के फेरे .....  

#COVID-19

सुरंगमा

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